September 17, 2011

प्रेरणा

जब मंजिले नज़र आये और रास्ता न मिल पाए
रख हिम्मत मेरे यार, आओ एक पथ पर चलते ही जाए

जब रोशिनी दिखे कही दूर पर किरण न पहुच पाए
रख होसला ज़रा, चल एक नया दीप जलाए

जब रास्ते पर कुछ लोग तेरे लिए काँटा बन जाए
रख भरोसा खुदपर, देखना कही कदम ना डगमगाए

जब कड़ी धुप में हालात भी तेरा खून खौलाए
रख इतनी ढंडक अपने दिल  में कि इन्द्र भी खुद बरसाए

जब दुनिया में, तेरे आलोचकों की संख्या बढ़ जाए
रख संयम इतना कि उनको भी तू माफ़ कर पाए

जब अपने हो जाये पराए और दूरियाँ बढती जाए
रख उम्मीद हमेशा, देख दिल टूट ना पाए

जब जब  इन सारी बातों से तेरा दिल घबराये
भूल उन पलो, उन किस्सों को जो तुने थे सजाये

होकर मगन अपने धुन में याद रख सदा
राही का तो काम हैं चलता जाए, चलता जाए ||

June 22, 2011

दोस्ती (भाग २)

इन आँखों में अश्रु अब पल पल आ जाते हैं
जब मुझे मेरे वि०आई०टी के दिन याद आते हैं
दोस्तों की आवाज़ कानो में गूंजती हैं सदा
रोते रोते हम एक बार फिर जी जाते हैं

दिल के दीवारों पर वोही तस्वीरे नज़र आती हैं
जिसमे रहते मेरे यार, मेरे प्रिय सहपाठी हैं
अब जब भी वो बीतें लम्हे याद आते हैं
रोते रोते हम एक बार फिर जी जाते हैं

यादों के सहारे ही अब ज़िन्दगी आगे बढ़ाते हैं
पुरानी बातें याद कर के, आए दिन मुस्कुराते हैं
ऐसी यादें छोर चुके हो तुम सब इस दिल में
रोते रोते हम एक बार फिर जी जाते हैं

ये कविता नहीं दिल की बात कही हैं तुम सबसे 
अब तुम सब की बहुत याद सताती हैं 
और जब भी कोई सामने आ जाता हैं यादें लिए 
दिल ही दिल में हम एक बार फिर जी जाते हैं 

कुमार उत्कर्ष द्वारा सभी दोस्तों को समर्पित ||
धन्यवाद 

April 26, 2011

दोस्ती

सोच रहा था  तन्हा बैठा
अकेला ही रह गया
पर पीछे कोई नहीं हैं छूटा
भिन्न पथो पर सब आगे बढ़ गए

सोच रहा था तन्हा बैठा
अकेला ही रह गया.....

खुश हू की ख़ुशी मिली मुझे
और कामयाबी ने गले लगाया तुम्हे
पर गम हैं अब सब व्यस्त होंगे
एक दुसरे को देखने को नयन तरसेंगे

शायद येही सोच रहा था मैं तन्हा बैठा
किस सन्दर्भ में अकेला रह गया.....

सोचते थे हम सब एक दुसरे के लिए
भलाई करने पर भला और बुराई पर बुरा
रचते थे षड़यंत्र जन्मदिन पर पिटाई के
वो क्या दिन थे फेल होने पर बधाई के

येही सोच रहा था मैं तन्हा बैठा
क्या सच में अकेला रह गया

दिन भर की मस्ती अब काम में बदलेगी
याद करके अब सोयेंगे हम रातों की हँसी
वो मेरे दोस्त का बीच रात में एक मूवी लेने आना
या बगल के कमरे वाले का सुट्टा जलाना

सच ही तो सोचा तन्हा बैठा
सब साथ बढे पर कुछ छूट गया

कैसे पल बिताये थे साथ हमने
क्या रिश्ता था निभाया सबने
अब यादें ही याद आएँगी
कभी कभी आँखें नाम कर जाएँगी

पर हम सबको आगे हैं बढ़ते रहना
संभाल कर रखना हैं ये दोस्ती का गहना
चाहे ४ मिनट के लिए हो या ४ साल
खुदा करे जलती रहे दोस्ती की मशाल

इसलिए सबको उत्कर्ष की शुभकामनाए
आप सब अपनी ज़िन्दगी में बहुत धन, दौलत और नाम कमाए
कही भी रहना दोस्त पर ये न भूल जाना
तुम्हारी ज़िन्दगी में मेरा आना और धीरे से चले जाना

सोच रहा था मैं येही तन्हा  बैठा
जिसे पन्ने पर उतार दिया....
सलामे दोस्ती मेरे यारो
जो तुमने निभा लिया......

--- कुमार उत्कर्ष
     (कट्पडी से चेन्नई जाते वक़्त ट्रेन में लिखी हुई कविता)
     १७-०४-२०११

March 10, 2011

ह्रदय मंथन

मैं कहता नहीं तो यह मत समझ लेना
कोई दिल को भा गया हैं मेरे
बेवफाई न की है ना ही मुझे देना
देखा नहीं कोई सपना बिन तेरे

पहुच हो तो सितारे भी तोड़ लाऊँ
एक हंसी क लिए शत बार मर जाऊं
सुनना आसान लग रहा होगा तुम्हे
पर कसम की कसम है मुझे

हर गीत में तुम्हारी ही आवाज़ ढूँढता हूँ
हर तस्वीर में एक ही अक्स खोजता हूँ
मेरी रूह से अब अलग न होना तुम
आवाज़ देकर मुझे कही न होना गुम्म

बिन तेरे जीना मुश्किल है अब मेरा
ढूँढता रहूँगा हर सांझ के बाद सवेरा
उस पल के आते ही झट आँखें मूँद लूँगा
तुम्हे अपने सपनो की दुनिया में कैद कर दूंगा ....


March 03, 2011

असलियत का आईना - जीवन के कटु सत्य

ज़िन्दगी इंसान को सच में जीना सिखा देती है | और जब तक ज़िन्दगी यह पाठ नहीं पद्धति तब तक इंसान शायद सिर्फ एक कटपुतली रहता है, पता नहीं जिसकी डोर कहा है ?? हमेशा से सुनता आया हूँ की आपके जीवन में घटनाये घटेंगी जिनसे आपको आगे बढ़ने की प्रेरणा मिलेगी |जितने भी लोग इसे पढ़ रहे हैं उन्हें मैं एक सलाह, एक राय अवश्य देना चाहूँगा -


जब भी कोइ व्यक्ति किसी भी कार्यालय में अपना काम करना आरंभ करता हैं तो उसपर सभी की नज़रे टिकी रहती हैं | साधारण तोर पर तो उसके उपरी पद वाले उसपर निगाहें जमा कर रखते है ये देखने के लिए की वो काम कैसा कर रहा है ताकि उसकी उन्नति के बारे में वो सोच सके | अब होता ये है की उधाहरण के तोर पर अगर एक व्यक्ति 'अ' बहुत अच्छा काम कर रहा है तो उसके गुरुजन उसे बहुत आदर सम्मान देंगे, उसे उन्नति देंगे, उसके शुभ और खुशहाल भविष्य की कामना करेंगे | दिक्कत यह आती हैं की यह बात 'अ' के साथ काम करने वालो को पसंद नहीं आती | यह कोई अलग उधाहरण नहीं है, बल्कि ज़िन्दगी की एक सच्चाई सच्चे रूप से दर्शाने की कोशिश कर रहा हूँ मैं | जो लोग अभी कार्यरत नहीं हैं और यह पाठ पढ़ रहे है वो ये बात गाँठ बाँध ले की उनके ज़िन्दगी में ऐसे शण अवश्य ही आयेंगे |

खैर मैं अपनी बात को आगे बढ़ता हू | मैं यह कह रहा था की आपके साथ काम करने वाले कैसे ये बर्दाश्त कर सकते है की कोई उनसे ज्यादा ऊपर हो जाये ??? कैसे ये बर्दाश्त कर सकते है की उस कार्यालय में या उस ऑफिस में जो भी आप से पद में छोटे है वो आप ही का सबसे ज्यादा आदर सत्कार करे ??? उनसे ये कदापि बर्दाश्त नहीं होगा की अगर किसी को कोई परेशानी हो तो वो हर बार आप ही के पास आकर के सलाह मश्वारह करे |
ऐसे पल और ऐसे हालात अक्सर कार्यरत लोगो में देखने को मिलते है पर एक बात और भी सत्य हैं और वो यह की आपका कोई भी सहकर्मी कभी आपके खिलाफ कुछ नहीं उगलेगा | और आपसे भी हमेशा बहुत ही अच्छे तरह पेश आएगा , परतु अन्दर ही अन्दर ज्वेश और जलन की भावना उसे आपका बुरा चाहने और बुरा करने को उकसाती रहेगी | सबसे पहली बात तो यह हैं की आपके मन्न में कभी ऐसी भावना का उजागर हो तो शीग्र अति शीग्र इसका इलाज खुद से करे क्यूंकि जब ये भावना उजागर होगी तो उसका पता भी सबसे पहले आप ही को चलेगा | अगर कोई व्यक्ति आपसे अपने ज़िन्दगी के कुछ सिखाये हुए पल बाट रहा है तो कोशिश करनी चाहिए की आप उस हालात में कभी न फसे |
अब अगर हम बात करे उस व्यक्ति 'अ' की जो की बहुत नाम कम रहा हैं | अगर उसके सहकर्मी में कोई सहकर्मी बहुत बडबोला हो, जो की बिना सोचे ही कुछ भी बातें करता हो, तो भाई उस से तो बिलकुल रहा न जायेगा | ऐसे लोगो की एक ही परेशानी होती हैं न तो वो खुद कोई काम करेंगे ढंग से, न ही दुसरे को करने देंगे | हमेशा भले लोगो की राह में कांटे उगायेंगे ऐसे व्यक्ति | ये सोचते है की वह उस भले मानुष का नुक्सान कर रहे है परन्तु ऐसे हालत उस भले मानुष को शायद और भी मज़बूत और साहसी बनाते है | उनकी राह का काँटा बनाने के फेरे में वो खुद का तो सब कुछ सत्यानाश करा ही लेते हैं उलटे वो भले मनुष्य शायद और भी ऊपर बढ़ता जाता है | अब जब उनकी तरकीब नहीं चलती तब ऐसे लोग शुरू करते हैं गुटबाजी करना और नेतागिरी दिखाना | कभी खुद की तारीफ नहीं करेंगे, करेंगे दुसरे की तारीफ ये सोचकर की उनकी छवि अच्छी बन रही है | अपने  साथ अपने काम करने वाले २-३ लोगो के साथ षड़यंत्र रचेंगे की कैसे 'अ' की ज़िन्दगी खुशाल से उदास बनायीं जाये | बस येही रचते रचते उनका जीवन चलेगा |
ऐसे लोगो को पहचानना काफी आसान है | मैं अपने पाठको को बतला दू की ऐसे लोगो को आप बहुत ही आसानी से पहचान सकते है | ऐसे कपटी और दुष्ट लोगो का साथ उन्ही के जैसे कपटी लोग देते है |
और आज भी दुनिया में भलाई ज्यादा हैं तभी शायद लोगो का भगवान् पर से विश्वास नहीं उठा |
इसीलिए ये कप्टती लोग हमेशा कम की तादाद में पाए जाते है | इनका एक छोटा सा गुट होता है जिसमे सामान सोच के चवन्नी मानसिकता वाले २-३ लोग ही होते है | बाकी के सभी छोटे एवं बड़े अधिकारी इनकी रंगत देखकर इनसे दूर ही रहना पसंद करते है | पर अभी भी वो लोग शांत नहीं होते |
'अ' जैसे भले मनुष्य को परेशान करने के बाद जब वो ये देखते हैं की " अरे ये क्या, हमारा वार उल्टा पद गया ये इंसान टूटने के जगह और भी मज़बूत बन गया हैं |"  ये देख कर उनके मन्न में फिर से कुछ गिरी हुई हरकत करने की बिगुल बजती है |

अब साम, दाम, दंड, भेद सारे कुछ अपनाने की विधि सोची जाती है | अब यह गुट लग जाता है उस इंसान को मानसिक तोर पर प्रताड़ित करने में कैसे ?? पब्लिक में 'अ' का नाम उछाल कर गलत रूप से | सबसे पहला लक्ष्य होता है की 'अ' को पहले थोडा  बदनाम किया जाये और उसका साथ देने वालो की तादाद कम की जाये | ऐसा नहीं हैं की लोग 'अ' का साथ छोड़कर उस कपटी संगठन में मिल जायेंगे |
पर उन लोगो को इसी से ख़ुशी होगी की लोगो ने साथ छोड़ा तो सही | अब पीठ पीछे बुराई होगी, गलत बातें होंगी , अव्फाहे फैलाई जाएँगी और न जाने क्या क्या षड़यंत्र रचा जायेगा | पर मैं अभी भी आप लोगो को एक जीवन के सत्य से परिचित करता हू की इन सब बातों का असर बहुत कम लोगो पर होगा | अगर आपके मित्रो की संख्या ५०० है तो इन बातो से अधिकतम ५ लोग प्रभावित होंगे |
अब लो भाई, फिर से ये षड़यंत्र भी नहीं चला अब क्या किया जाये ??? :((

अब कुछ और सोचा जायेगा | अब ये गुट सीधे ऊपर बैठे अधिकारियो को अपने निशाने पर लेगा |
ज़ाहिर सी बात है की अगर ४-५ लोग जाकर आपकी शिकायत करे तो आपके बॉस को या आपके सेनियर को येही लगेगा की हाँ भाई सही बात है, अगर इसके सहकर्मी ऐसी बातें कर रहे है तब तो सही ही होगा |
अब मैं आपसे एक सवाल पूछता हू हालाकि  ये लेख काफी बड़ा हो गया है पर अगर आपने यहाँ तक इसे पढ़ा है तो एक जवाब अवश्य दे - क्या होगा आगे आपके सहकर्मियों की संख ४ या ५ हो और वो सारे आपके खिलाफ जाकर ज़हर उगल दे ???
मुझे आपके जवाब का इंतज़ार रहेगा |
यह लेख आप लोगो के जवाब के बिना अधूरा हैं इसीलिए जावाब अवश्य दे | मित्रो इसे लिखने में बड़ी कठिनाई हुए है, सच में, पर आपसे बस एक वाकया ही लिखने को कहा है | लिखे ज़रूर |

और हाँ, कभी भी ज़िन्दगी में ऐसे हालत उत्पन्न हो, तो थक कर या हार मानकर कभी न बैठना |
ज़िन्दगी ने अभी शुरुआत की हैं , आगे मिलो के फासले तये करने है, बहुत सी मंजिलो को हस्सिल करना है, एक नए मुकाम तक पहुचना है | इन हालातो से लड़ना सीखना मित्रो | विश्वास करो ये हालात तुम्हे ज़िन्दगी जीना सीखला देंगे और जीवन का ये सफ़र बहुत सुहाना हो जायेगा |
आखिर किसी ने सच ही कहा है-

" वो ज़िन्दगी, ज़िन्दगी ही क्या जिसमे थोड़ी कड़वाहट मिठास के साथ न हो "

किसी ने ज़रूर कहा होगा ये वैसे तो, पर अगर नहीं कहा तो समझ लीजिये ये मेरी रचना है |
:))
आप सभी को जीवन में सदैव सफलता मिले ऐसी मेरी कमाना है |

आपका आभारी
--- उत्कर्ष