April 26, 2011

दोस्ती

सोच रहा था  तन्हा बैठा
अकेला ही रह गया
पर पीछे कोई नहीं हैं छूटा
भिन्न पथो पर सब आगे बढ़ गए

सोच रहा था तन्हा बैठा
अकेला ही रह गया.....

खुश हू की ख़ुशी मिली मुझे
और कामयाबी ने गले लगाया तुम्हे
पर गम हैं अब सब व्यस्त होंगे
एक दुसरे को देखने को नयन तरसेंगे

शायद येही सोच रहा था मैं तन्हा बैठा
किस सन्दर्भ में अकेला रह गया.....

सोचते थे हम सब एक दुसरे के लिए
भलाई करने पर भला और बुराई पर बुरा
रचते थे षड़यंत्र जन्मदिन पर पिटाई के
वो क्या दिन थे फेल होने पर बधाई के

येही सोच रहा था मैं तन्हा बैठा
क्या सच में अकेला रह गया

दिन भर की मस्ती अब काम में बदलेगी
याद करके अब सोयेंगे हम रातों की हँसी
वो मेरे दोस्त का बीच रात में एक मूवी लेने आना
या बगल के कमरे वाले का सुट्टा जलाना

सच ही तो सोचा तन्हा बैठा
सब साथ बढे पर कुछ छूट गया

कैसे पल बिताये थे साथ हमने
क्या रिश्ता था निभाया सबने
अब यादें ही याद आएँगी
कभी कभी आँखें नाम कर जाएँगी

पर हम सबको आगे हैं बढ़ते रहना
संभाल कर रखना हैं ये दोस्ती का गहना
चाहे ४ मिनट के लिए हो या ४ साल
खुदा करे जलती रहे दोस्ती की मशाल

इसलिए सबको उत्कर्ष की शुभकामनाए
आप सब अपनी ज़िन्दगी में बहुत धन, दौलत और नाम कमाए
कही भी रहना दोस्त पर ये न भूल जाना
तुम्हारी ज़िन्दगी में मेरा आना और धीरे से चले जाना

सोच रहा था मैं येही तन्हा  बैठा
जिसे पन्ने पर उतार दिया....
सलामे दोस्ती मेरे यारो
जो तुमने निभा लिया......

--- कुमार उत्कर्ष
     (कट्पडी से चेन्नई जाते वक़्त ट्रेन में लिखी हुई कविता)
     १७-०४-२०११