May 24, 2012

असमंजस

दिल को बोला संभल जा ज़रा
दिल न माना फिर मेरी बात
एक बार फिर भरोसा कर के
पहुंचा ह्रदय पे गहरा आघात

ये क्या हैं विडंबना, क्या हैं बात
क्यों बहक गए हैं आज फिर से जज़्बात
याद नहीं क्या उनको वो दिन
जब खाया था एक विश्वासघात

सुना हैं बाखूब किसी शायर से
दिल संभल जा ज़रा फिर बहक रहा है तू
मैं कहता लौट कर वापिस मत आना मेरे पास
मैं खुद नहीं सोच पाउँगा की मैं क्या बोलू

खुदा के बन्दे पर नीमत हैं उसकी
बच निकले थे जैसे तुम पिछली बार
आखिरी बार कह रहा हू संभल जा
टूट न जाए कही दिल के वो तार,
और बिखर जाये ज़िन्दगी की झंकार......!!!

3 comments:

yamini said...

dil ki gahrayiuon se likhi kavita.... dil ko chu jati h..:):)
Keep writing!!!

Writefully Yours said...

bahut khoobsurat bhai

Unknown said...

wah!! kya khoob likha hai!! kavita ke peechhe ki kahaani kaafi gehri maaloom padti hai..:)